तू अकेला चल
जब-जब दुनिया की ललकार हो,
जब-जब मंजिल की पुकार हो,
तब-तब तू अकेला चल।
तू अकेला चल।।
महफ़िल को खुद में समेट लो,
तुझ में भी है दम कुछ कर गुजरने की,
खुद में झांको और देख लो,
मंजिल को चलो और चलते रहो,
जब तक ना तुम पर हो,
चलते रहो, और चलने के लिए,
अकेले ही तैयार रहो।
जब-जब मुसीबत ही पहाड़ हो,
जब-जब वक़्त की तुम पर मार हो,
जब-जब कोई तुम्हे राहों में रोके,
जो खुद ही कभी ना पार हो,
तब-तब तू अकेला चल।
तू अकेला चल।।
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