मेरे मन के गांव में एक पगली लड़की रहती है,
अपनी सारी बातें वो मेरे सपनों में कहती है,
अक़्सर पूछा करती है कब तुम मिलने आओगे,
मैं तेरी हूँ तुम मेरे हो कब खुद को समझाओगे।
पता नहीं क्यों पगली लड़की मेरे खातिर भूखी रहती है,
सोम,मंगल, शुक्र, शनि सब व्रत छुप के वो करती है,
वो पगली लड़की मेरे सपनों में ही क्यों आती है,
अपनी सारी बातें वो रोकर क्यों सुनाती है।
तुम्हे पता ना होगा कल कुछ रिश्ते वाले आये थे,
मेरी शादी की बातें करने बाबा ने बुलवाये थे,
कुछ भी करो तुम ले चलो मुझे, तुझमे ही दुनियां बसानी है,
बस..बस तेरे ही नाम की मेंहदी अपने हाथों में सजानी है।
तुमसे बस तुमसे है प्रेम, मैं तेरे बिन रह ना पाउंगी,
मैं इतनी मजबूर हूं कि बाबा से कह ना पाउंगी,
अगर हुई मैं तुझसे जुदा तो देख लेना, हां देख लेना,
तेरी जुदाई के आलम में मैं जहां में रह ना पाउंगी।
तभी अचानक मुझको खिड़की पर कुछ आहट सुनाई देती है,
मैं डरकर बाहर आता हूं कोई न दिखाई देती है,
वो पगली लड़की कहाँ है इसका खुद भी मुझे पता नही,
क्यों है मुझे वो परेशान करती, मेरी तो कुछ भी खता नही।
लेकिन ऐसा क्यों लगता है मुझको, इधर भी,
उधर भी, जहां सोचू हर जगह,
वही बस वही आवाज़ लगाती है,
सच मे बस सपने में है तब तो नज़र ना आती है।
क्यों लगता है मुझको उसके बिन मैं जी लूंगा,
बस उस पगली लड़की के खातिर अपने मंजिल को मैं छू लूंगा,
ये सब तो है किस्सा कहानी कुछ भी सही नही है,
मेरे सपने में है जो पगली लड़की इस दुनियां में ही नहीं है।
~ मतवाला-जी